हमारे बारे में

सृजन:

1. भारत सरकार ने दिनांक 28.08.1970 के संकल्प संख्या 8/136/68-पी.आई (कार्मिक I) के तहत गृह मंत्रालय के अंतर्गत औपचारिक रूप से पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो (बीपीआरएंडडी) की  स्थापना की, जिससे तत्कालीन मौजूदा पुलिस अनुसंधान एवं सलाहकार परिषद (1966) को एक नया दिशानिर्देश मिला और निम्नलिखित कारणों से  पुलिस बल के आधुनिकीकरण के प्राथमिक उद्देश्य से इसकी स्थापना की गई:

क) प्रत्यक्ष और सक्रिय रूप से मुद्दों में रुचि लेना।

ख) पुलिस समस्याओं के त्वरित एवं व्यवस्थित अध्ययन को बढ़ावा देना,

ग) पुलिस द्वारा उपयोग की जाने वाली विधियों और तकनीकों में विज्ञान और प्रौद्योगिकी को लागू करना।

इसके अतिरिक्त, द्वितीय रूप से, संकल्प ने ब्यूरो के लिए एक परामर्शदाता की भूमिका भी अनिवार्य कर दी गई।

2. ब्यूरो की स्थापना प्रारंभ में निम्नलिखित दो प्रभागों के साथ की गई थी, जिनके कर्तव्यों का एक सुव्यवस्थित चार्टर निर्धारित किया गया थाः

क) अनुसंधान, सांख्यिकी और प्रकाशन

ख) विकास

3. देश में पुलिस बलों की क्षमता में सुधार के लिए प्रशिक्षण एक आवश्यक और निरंतर बढ़ती हुई जरूरत है।  भारत सरकार द्वारा गठित गोरे-कमेटी (1971) ने पुलिस के प्रशिक्षण पहलुओं का अध्ययन किया और अपनी कई सिफारिशें दीं। भारत सरकार ने इन सिफारिशों को स्वीकार करते हुए ब्यूरो के अंतर्गत कार्य करने के लिए पहले से मौजूद दो प्रभागों के अतिरिक्त एक प्रशिक्षण प्रभाग (1973) का गठन किया गया।

4. विकास प्रभाग के अंतर्गत फोरेंसिक विज्ञान सेवाएं समय के साथ बढ़ीं और वर्ष 1983 में बीपीआरएंडडी के अंतर्गत फोरेंसिक विज्ञान का एक अलग निदेशालय अस्तित्व में आया।

5. इसके अलावा, वर्ष 1995 में भारत सरकार ने सुधारात्मक प्रशासनिक कार्यो से संबंधित मुद्दों को बीपीआरएंडडी को सौंपने का निर्णय लिया, ताकि जेलों से संबंधित समस्याओं और जेल सुधारों के कार्यान्वयन को ब्यूरो द्वारा समेकित तरीके से उठाया जा सके। यह व्यवस्था मौजूदा संसाधनों से संचालित हो रही है।

6. वर्ष 2008 के दौरान, भारत सरकार ने बीपीआरएंडडी के प्रशासनिक नियंत्रण में राष्ट्रीय पुलिस मिशन बनाने का निर्णय लिया, जिससे देश में पुलिस बलों को आवश्यक भौतिक, बौद्धिक और संगठनात्मक संसाधनों से सुसज्जित करके आंतरिक सुरक्षा बनाए रखने और भविष्य में चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रभावी साधन में परिवर्तित किया जा सके।

पृथक्करण

1.  यद्धपि अपराध विज्ञान और फोरेंसिक विज्ञान संस्थान (ICFS) की स्थापना BPR&D के समग्र पर्यवेक्षण और मार्गदर्शन के तहत इसी प्रक्रिया के एक भाग के रूप में की गई थी, इसे 1976 में एक अलग इकाई के रूप में कार्य करने की अनुमति दी गई; क्योंकि संस्थान की स्थापना का अंतिम उद्देश्य अपराध विज्ञान और फोरेंसिक विज्ञान में अध्ययन को आगे बढ़ाने के लिए एक पूर्ण शैक्षणिक संस्थान विकसित करना था। जिसे वर्ष 1991 में इसका पुनः नामकरण किया गया और वर्ष 1982 से यह लोक नायक जय प्रकाश नारायण (एलएनजेएन), राष्ट्रीय अपराध विज्ञान एवं फोरेंसिक विज्ञान संस्थान के रूप में कार्य कर रहा है। यह संस्थान आपराधिक न्याय प्रणाली के अधिकारियों को दो विषयों अर्थात् अपराध विज्ञान और फोरेंसिक विज्ञान में प्रशिक्षण पाठ्यक्रम प्रदान करता है और अनुसंधान कार्य करता है।

2. विकास की गतिशीलता बढ़ी और प्रत्येक क्षेत्र में विशेषज्ञता की आवश्यकता उत्पन्न हुई। राष्ट्रीय पुलिस आयोग (1977) ने भी कुछ उपायों की सिफारिश की जिन्हें लागू करना आवश्यक था । इसके साथ ही तकनीकी नवाचारों, विशेषकर कंप्यूटरों ने अपराध नियंत्रण और अपराध का पता लगाने के कई क्षेत्रों में सहायता का वादा किया है, इसके अलावा विश्लेषण के उद्देश्य से सांख्यिकीय डेटा को संसाधित करने का भी वादा किया है। इसलिए भारत सरकार ने 1986 में एक अन्य प्रस्ताव पारित कर राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो की स्थापना करने का निर्णय लिया और अनुसंधान प्रभाग के सांख्यिकी और प्रकाशन कार्य को नवगठित ब्यूरो को सौंप दिया, साथ ही उनके कम्प्यूटरीकरण की योजना भी बनायी।

3. विकास की बाध्यताओं के कारण उठाए गए एक समान कदम के तहत भारत सरकार ने फोरेंसिक विज्ञान प्रभाग को एक स्वतंत्र दर्जा देने का निर्णय लिया, जिसके लिए एक फोरेंसिक विज्ञान निदेशालय का गठन किया गया, जिसे गृह मंत्रालय के प्रत्यक्ष नियंत्रण के अंतर्गत स्वायत्त दर्जा प्राप्त होगा।

logo.svg